मंगलवार, 14 अक्टूबर 2025

🛕 बीजामंडल (विजया मंदिर), मध्य प्रदेश


🛕 बीजामंडल (विजया मंदिर), मध्य प्रदेश — पूरा परिचय

स्थान: खजुराहो के दक्षिणी मंदिर समूह के पास, जटकरी गाँव, ज़िला छतरपुर, मध्य प्रदेश।
अन्य नाम: इसे विजया मंदिर या बीजामंडल मंदिर भी कहा जाता है।


🌿 इतिहास और महत्व

  • बीजामंडल मंदिर का निर्माण लगभग 8वीं सदी में शुरू हुआ था, और बाद में परमारा राजवंश (लगभग 11वीं सदी) के राजा नरवर्मन ने इसका पुनर्निर्माण कराया।

  • यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित माना जाता है।

  • “विजया” नाम देवी का रूप माना जाता है, इसी वजह से इसे विजया मंदिर भी कहा जाता है।

  • इस मंदिर में कभी अत्यंत सुंदर मूर्तियाँ, नक्काशियाँ और पत्थर की कलाकृतियाँ थीं — जैसे अप्सराएँ, हाथी, घोड़े और देवी-देवताओं की मूर्तियाँ।

  • मुगल काल में, औरंगज़ेब के शासन के दौरान, इस मंदिर को तोड़ा गया और उसी स्थान पर एक मस्जिद (आलमगीर मस्जिद) बनाई गई।

  • वर्ष 1991 में भारी वर्षा के बाद जब मस्जिद की दीवार का एक हिस्सा गिरा, तो नीचे से प्राचीन मूर्तियाँ और नक्काशीदार पत्थर बाहर आए — जिससे मंदिर का असली स्वरूप फिर से उजागर हुआ।


🏛️ वास्तुकला और वर्तमान स्थिति

  • मंदिर का निर्माण ऊँचे चबूतरे (प्लिंथ) पर हुआ था, जहाँ अभी भी अद्भुत नक्काशी देखने को मिलती है —
    जैसे हाथी, घोड़े, नर्तक, अप्सराएँ और ज्यामितीय आकृतियाँ।

  • इसकी कुल लंबाई लगभग 34.6 मीटर है — जो खजुराहो के प्रसिद्ध कंदारिया महादेव मंदिर से भी बड़ी है।

  • परंतु निर्माण अधूरा रह गया था, इसलिए कई हिस्से अधूरे या खंडहर रूप में हैं।

  • आज यहाँ केवल मंदिर का आधार और कुछ दीवारें शेष हैं, पर फिर भी इन खंडहरों में छिपी कला अद्भुत है।


📍 स्थान और पहुँचने का मार्ग

  • पता: सेवाग्राम, खजुराहो, मध्य प्रदेश 471606 (जटकरी गाँव के पास)

  • दूरी: खजुराहो बस स्टैंड से लगभग 2–3 किलोमीटर दूर।

  • कैसे पहुँचे:

    • टैक्सी या ऑटो से आसानी से जाया जा सकता है।

    • चतुरभुज मंदिर देखने के बाद यहाँ पहुँचना सबसे सुविधाजनक रहता है क्योंकि यह पास ही स्थित है।

  • रास्ता थोड़ा संकरा है, इसलिए पैदल चलने के लिए तैयार रहें।


🕐 समय और प्रवेश शुल्क

  • खुलने का समय: सुबह 8:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक

  • प्रवेश शुल्क: सामान्यतः निःशुल्क (फ्री)

  • यहाँ कोई टिकट काउंटर या गेट शुल्क नहीं है, क्योंकि यह पुरातात्त्विक खंडहर क्षेत्र है।


🌤️ घूमने का सबसे अच्छा समय

  • सुबह या शाम का समय सबसे उपयुक्त है — जब रोशनी मध्यम होती है और मूर्तियों की बारीक नक्काशी स्पष्ट दिखती है।

  • अक्टूबर से फरवरी के बीच का मौसम सबसे अच्छा माना जाता है।

  • मानसून के बाद आस-पास की हरियाली से यह स्थल और सुंदर हो जाता है।


💡 यात्रा सुझाव (Visitor Tips)

  1. 👟 आरामदायक जूते पहनें — रास्ता ऊबड़-खाबड़ और असमान हो सकता है।

  2. 💧 पानी और हल्के नाश्ते साथ रखें — यहाँ खाने-पीने की दुकानें बहुत कम हैं।

  3. 🧭 स्थानीय गाइड या गाँव के बुजुर्गों से बातचीत करें — वे इस स्थान के रोचक इतिहास के बारे में बता सकते हैं।

  4. 📸 फोटोग्राफी अनुमति है — खंडहरों और नक्काशी की फोटोज़ बेहद सुंदर आती हैं।

  5. 🙏 सम्मानजनक व्यवहार रखें — क्योंकि यह स्थल धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टि से संवेदनशील है।

    🗺️ मानचित्र-गाइड व मार्गदर्शन

    1. प्रमुख स्थान और मार्ग

    • खजुराहो शहर (राजनगर क्षेत्र) केंद्र बिंदु रखें।

    • बीजामंडल मंदिर, जो जटकरी गाँव (Jatkara / Jatkari) के पास स्थित है, शहर से लगभग 2 किमी की दूरी पर है।

    • मंदिर तक पहुँचने के लिए मुख्य सड़कें:
       • Vidisha-Ashoknagar Road मार्ग के पास मंदिर स्थित है। Wikipedia
       • State Highway 5 (MP SH 5) खजुराहो को अन्य स्थानों से जोड़ती है। Wikipedia

    2. आसपास के मंदिर और स्थलीय समूह

    • खजुराहो के प्रसिद्ध मंदिर समूह (Eastern, Western, Southern Groups) मानचित्र पर दिखेंगे — आप पहले वहाँ जा सकते हैं, फिर बीजामंडल की ओर बढ़ सकते हैं (बेहद समीप)।

    • UNESCO की साइट प्लान पर खजुराहो मंदिरों की स्थिति दी गई है, जिससे आप अपनी यात्रा को सुचारू रूप से व्यवस्थित कर सकते हैं।

    • मानचित्रों में चतुरभुज मंदिर, दूलादेо मंदिर आदि दिखेंगे — ये अन्य दर्शनीय स्थान हैं जिन्हें आप यात्रा में जोड़ सकते हैं।

    3. होटल और रहने की सुविधाएँ (नज़दीकी विकल्प)

    • खजुराहो में कई होटल हैं जहाँ आप निवास कर सकते हैं: The Lalit Temple View, Ramada by Wyndham Khajuraho, Radisson Hotel Khajuraho, Hotel Isabel Palace आदि। 

    • Sevagram और राजनगर क्षेत्र में भी कुछ होमस्टे एवं छोटे होटल विकल्प हैं। 

    • खजुराहो रेलवे स्टेशन के निकट भी होटल विकल्प उपलब्ध हैं। 


    🧭 यात्रा सुझाव — मानचित्र के अनुसार

    1. शहर में ठहराव: खजुराहो में रहें ताकि सभी मंदिर और बीजामंडल आसान पहुँच में हों।

    2. रूट प्लान:
       - पहले खजुराहो मंदिरों का दौरा करें (Western / Southern / Eastern groups)
       - फिर बीजामंडल मंदिर की ओर जाएँ — क्योंकि वह कम दूर है और अंतिम पड़ाव हो सकता है।

    3. यातायात साधन: टैक्सी, ऑटो या निजी वाहन लेकर चलें — सड़कें अच्छी हो सकती हैं, लेकिन गाँव की हिस्सों में रास्ते संकरे हो सकते हैं।

    4. समय देना: मंदिरों के बीच चलने-फिरने और स्थान बदलने में समय लग सकता है — इसलिए पर्याप्त समय रखें।

    5. मानचित्र साथ रखें: यह मानचित्र-गाइड और स्थानीय दिशानिर्देश (होटल/प्रदर्शनी केंद्रों से) आपके काम आएँगे।


शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

वृंदावन मंदिर

 वृंदावन मंदिर: एक पूर्ण मार्गदर्शिका


बांके बिहारी मंदिर


वृंदावन, जिसे "ब्रज भूमि" का हृदय कहा जाता है, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले में स्थित एक पवित्र नगरी है। यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण की बचपन की लीलाओं और रासलीला का केंद्र रहा है। यहाँ सैकड़ों मंदिर हैं, जिनमें से कुछ अत्यंत प्रसिद्ध और ऐतिहासिक हैं।https://www.youtube.com/@mythfab1662

वृंदावन के प्रमुख मंदिर और उनकी विशेषताएं

1. बांके बिहारी मंदिर

  • विशेषता: यह वृंदावन के सबसे प्रसिद्ध और पूज्य मंदिरों में से एक है। यहाँ भगवान कृष्ण का स्वरूप "बांके बिहारी" विराजमान है, जिनकी मूर्ति अत्यंत आकर्षक और चंचल है।

  • मान्यता: ऐसा माना जाता है कि मूर्ति में इतनी चेतना है कि भक्तों की तीव्र आस्था से यह हिलने लगती है। यहाँ भजन-कीर्तन का विशेष महत्व है।

  • दर्शन समय: सर्दी में 7:45 AM से 12:30 PM और 3:30 PM से 8:00 PM, गर्मी में 7:45 AM से 12:30 PM और 4:00 PM से 9:00 PM। मध्याह्न में मंदिर बंद रहता है।

2. श्री रंगनाथजी मंदिर (श्रीरंग मंदिर)

  • विशेषता: यह दक्षिण भारतीय शैली में बना विशाल और भव्य मंदिर है, जो भगवान विष्णु के रंगनाथ स्वरूप को समर्पित है। इसकी वास्तुकला और शिल्पकला अद्भुत है।

  • मान्यता: इसे वृंदावन के सबसे बड़े मंदिरों में गिना जाता है।

3. प्रेम मंदिर (इस्कॉन मंदिर)

  • विशेषता: यह मंदिर अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (ISKCON) द्वारा बनवाया गया है। यह अपनी उत्कृष्ट संगमरमर की नक्काशी और आधुनिक सुविधाओं के लिए प्रसिद्ध है।

  • मान्यता: मंदिर की दीवारों पर भगवान कृष्ण की लीलाओं को बहुत ही सुंदर ढंग से उकेरा गया है। यहाँ का शांत और आध्यात्मिक वातावरण मन को शांति प्रदान करता है।

4. शाहजी मंदिर

  • विशेषता: यह मंदिर अपनी विशेष वास्तुकला और संगमरमर से बनी मनमोहक मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। इसमें सुंदर झूमर और 12 सर्पिल स्तंभ हैं।

  • मान्यता: इस मंदिर का निर्माण 19वीं शताब्दी में लखनऊ के एक प्रसिद्ध जौहरी शाह कुंदन लाल ने करवाया था।

5. राधा रमण मंदिर

  • विशेषता: यह वृंदावन के सबसे प्राचीन और पवित्र मंदिरों में से एक है। इसकी स्थापना स्वयं गोपाल भट्ट गोस्वामी ने की थी। यहाँ शालिग्राम शिला से प्रकट हुई राधा रमण (कृष्ण) की मूर्ति विराजमान है।

  • मान्यता: यहाँ की मूर्ति की पूजा "राधा रमण" के रूप में की जाती है, जिसका अर्थ है राधा जी को आनंद देने वाले।

6. निधिवन

  • विशेषता: निधिवन एक पवित्र वन है जिसे श्रीकृष्ण की रासलीला का स्थान माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि आज भी रात में श्रीकृष्ण और राधा यहाँ रासलीला करते हैं।

  • मान्यता: रात में सभी पशु-पक्षी और यहाँ तक कि देवता भी निधिवन को छोड़कर चले जाते हैं। शाम की आरती के बाद मंदिर के सभी किवाड़ बंद कर दिए जाते हैं।

7. सेवा कुंज

  • विशेषता: यह वह स्थान है जहाँ श्रीकृष्ण ने राधा और गोपियों के लिए अपनी बांसुरी बजाई थी और उनके श्रृंगार में सहायता की थी।

  • मान्यता: यहाँ आज भी पेड़ एक-दूसरे के सहारे खड़े हैं, जो राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक माने जाते हैं।

8. गोविंद देव जी मंदिर

  • विशेषता: इस मंदिर का निर्माण 1590 में राजा मान सिंह ने करवाया था। यह मंदिर अपनी भव्य और ऐतिहासिक वास्तुकला के लिए जाना जाता है।


वृंदावन क्यों जाना चाहिए?

  1. आध्यात्मिक शांति और आनंद: वृंदावन की हवा में ही भक्ति और प्रेम का समावेश है। यहाँ का वातावरण मन को शांति और आत्मा को आनंद प्रदान करता है।

  2. भगवान कृष्ण की लीलाओं का साक्षात अनुभव: वृंदावन की हर गली, हर कुंज और हर मंदिर में श्रीकृष्ण की कोई न कोई लीला छुपी हुई है। यहाँ आकर भक्त स्वयं को कृष्ण की लीलाओं के और करीब पाते हैं।

  3. अद्वितीय संस्कृति और परंपरा: यहाँ की संस्कृति भगवान कृष्ण के प्रेम और भक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है। रासलीला, भजन-कीर्तन और मंदिरों की शाम की आरतियाँ मन को मोह लेती हैं।

  4. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर: वृंदावन में सदियों पुराने मंदिर, उनकी वास्तुकला और मूर्तिकला कला प्रेमियों और इतिहासकारों के लिए एक खजाना है।

  5. मोक्ष की प्राप्ति: हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि वृंदावन में मृत्यु होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसीलिए कई भक्त अपना अंतिम समय यहीं बिताना चाहते हैं।

  6. राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम का केंद्र: वृंदावन राधा और कृष्ण के उस दिव्य प्रेम का प्रतीक है जो निस्वार्थ और शाश्वत है। यह प्रेम की सर्वोच्च अभिव्यक्ति का स्थान है।

निष्कर्ष:
वृंदावन केवल एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि एक ऐसी दिव्य भूमि है जहाँ आध्यात्मिकता, इतिहास, संस्कृति और अटूट विश्वास का समागम होता है। यहाँ आने वाला हर व्यक्ति अपने भीतर एक अलग ही प्रकार की शांति और उल्लास का अनुभव करता है। वृंदावन की यात्रा केवल एक सफर नहीं, बल्कि अपने आप को खोजने और दिव्य आनंद से जुड़ने का एक अवसर है।

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025

चित्तौड़गढ़ मंदिर सूची

 चित्तौड़गढ़ को "मेवाड़ की शान" और "बलिदानों की भूमि" कहा जाता है। यह सिर्फ अपने किले, युद्धों और वीरता की कहानियों के लिए ही नहीं, बल्कि यहाँ स्थित प्राचीन और अद्भुत मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ के मंदिर वास्तुकला, धार्मिक महत्व और इतिहास का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करते हैं।https://www.youtube.com/@mythfab1662

चित्तौड़गढ़ के मंदिरों की सूची

चित्तौड़गढ़ किले के अंदर स्थित मंदिर:

  1. कालिका माता मंदिर

  2. मीरा बाई का मंदिर (कृष्ण मंदिर)

  3. समिद्धेश्वर महादेव मंदिर (स्वर्ण मंदिर)

  4. तुलजा भवानी मंदिर

  5. खेत्रपाल महादेव मंदिर

  6. नीलकंठ महादेव जैन मंदिर

  7. श्रिंगार चौरी जैन मंदिर

  8. सतबीस देवरी जैन मंदिर

  9. गोमुख महादेव मंदिर (गोमुख कुंड के पास)

  10. सावलिया मंदिर, चित्तौड़गढ़

चित्तौड़गढ़ शहर में स्थित मंदिर:

  1. माता सती का मंदिर (सती विलास)

  2. राणा कुम्भा का मंदिर (बासी की बावड़ी के पास)

  3. जानकी मंदिर

  4. गंगौर माता मंदिर

  5. श्री रंगनाथजी मंदिर

आस-पास के प्रसिद्ध मंदिर:

  1. संत रविदास मंदिर (बड़ोली)

  2. मेनाल के प्राचीन मंदिर (चित्तौड़गढ़ से लगभग 90 किमी दूर)

  3. देव श्री कल्लाजी महाराज का मंदिर (मंडफिया)


चित्तौड़गढ़ किले के प्रमुख मंदिर

चित्तौड़गढ़ की पहचान यहाँ के विशाल किले से है, और इस किले के अंदर कई ऐतिहासिक मंदिर स्थित हैं।

1. कालिका माता मंदिर

  • इतिहास और महत्व: यह मंदिर चित्तौड़गढ़ किले का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण मंदिर है। मूल रूप से यह 8वीं शताब्दी में सूर्य देव (सूर्य मंदिर) के लिए बनाया गया था। 14वीं शताब्दी में महाराणा हम्मीर सिंह ने इसे कालिका माता (माँ दुर्गा का एक रूप) के मंदिर में परिवर्तित कर दिया। मान्यता है कि कालिका माता मेवाड़ राजवंश की इष्ट देवी हैं और उनकी कृपा से ही मेवाड़ ने कई युद्ध जीते।

  • वास्तुकला: मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है। इसके स्तंभों पर बारीक नक्काशी की गई है। मंदिर का शिखर और मंडप प्राचीन हिंदू मंदिर स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

2. मीरा बाई का मंदिर (कृष्ण मंदिर)

  • इतिहास और महत्व: यह मंदिर भक्ति आंदोलन की प्रसिद्ध संत-कवयित्री मीराबाई से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि मीराबाई यहाँ अपने इष्ट देव श्री कृष्ण की पूजा-आराधना किया करती थीं। यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है और मीरा की भक्ति की याद दिलाता है।

  • विशेषता: मंदिर अपेक्षाकृत साधारण है, लेकिन इसका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। यहाँ आकर भक्त मीरा की दिव्य भक्ति की अनुभूति करते हैं।

3. समिद्धेश्वर महादेव मंदिर

  • इतिहास और महत्व: यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसके शिखर पर सोने की परत चढ़ी हुई है, इसलिए इसे "स्वर्ण मंदिर" भी कहा जाता है। इसका जीर्णोद्धार महाराणा फतेह सिंह ने करवाया था।

  • विशेषता: मंदिर के गर्भगृह में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर देवी-देवताओं, अप्सराओं और पौराणिक कथाओं related to intricate carvings are visible. महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ विशेष उत्सव मनाया जाता है।

4. तुलजा भवानी मंदिर

  • इतिहास और महत्व: यह मंदिर देवी तुलजा भवानी (माँ दुर्गा का एक रूप) को समर्पित है। मान्यता है कि महाराणा प्रताप की तलवार इसी देवी ने आशीर्वाद स्वरूप दी थी। यह मंदिर राजपूत शूरवीरों की आराध्य देवी के रूप में प्रसिद्ध है।

  • विशेषता: मंदिर किले के अंदर एक शांत स्थान पर स्थित है।

5. जैन मंदिर (कुम्भश्याम मंदिर के निकट)

  • इतिहास और महत्व: चित्तौड़गढ़ किले में कई प्राचीन जैन मंदिर भी हैं जो 8वीं से 15वीं शताब्दी के बीच बनवाए गए थे। ये मंदिर जैन तीर्थंकरों को समर्पित हैं।

  • वास्तुकला: इन मंदिरों की वास्तुकला अत्यंत भव्य और सुंदर है। खासतौर पर नीलकंठ महादेव जैन मंदिर और श्रिंगार चौरी मंदिर प्रसिद्ध हैं। इनमें सफेद संगमरमर पर बेहतरीन नक्काशी देखने को मिलती है।


चित्तौड़गढ़ शहर के प्रमुख मंदिर

किले के बाहर भी चित्तौड़गढ़ शहर में कई महत्वपूर्ण मंदिर स्थित हैं।

1. माता सती का मंदिर (सती विलास)

  • महत्व: यह मंदिर चित्तौड़गढ़ शहर के बीचों-बीच स्थित है और यहाँ सती माता की प्रतिमा स्थापित है। यह मंदिर शहर के लोगों की गहरी आस्था का केंद्र है।

  • विशेषता: मंदिर परिसर काफी विशाल है और यहाँ हमेशा भक्तों का तांता लगा रहता है। मान्यता है कि यहाँ मन्नत मांगने पर वह जरूर पूरी होती है।

2. बASSी की बावड़ी और राणा कुम्भा का मंदिर

  • महत्व: बASSी की बावड़ी एक प्राचीन सीढ़ीदार कुआं है जिसके ठीक सामने महाराणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया एक छोटा सा मंदिर है। यह स्थान पानी की सुविधा और धार्मिक स्थल दोनों का काम करता था।

  • विशेषता: इसकी वास्तुकला देखने लायक है।

3. गौमुख कुंड और मंदिर

  • महत्व: यह एक प्राकृतिक जल स्रोत है जो एक गाय की मुखाकृति से निरंतर पानी गिरता रहता है, इसलिए इसे गौमुख कुंड कहते हैं। इस कुंड के ऊपर एक छोटा मंदिर बना हुआ है।

  • विशेषता: यह स्थान किले के नीचे स्थित है और यहाँ का वातावरण बहुत शांत और आनंददायक है। ऐसा माना जाता है कि इस कुंड का पानी पवित्र है।

यात्रा के लिए महत्वपूर्ण जानकारी

  • सबसे अच्छा समय: चित्तौड़गढ़ घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक का है जब मौसम सुहावना रहता है। गर्मियों में यहाँ का तापमान बहुत अधिक होता है।

  • कैसे पहुँचें:

    • हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर (लगभग 90 किमी) है।

    • रेल मार्ग: चित्तौड़गढ़ का अपना रेलवे स्टेशन है जो देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

    • सड़क मार्ग: चित्तौड़गढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग 48 से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। उदयपुर, अजमेर, कोटा आदि शहरों से बसें उपलब्ध हैं।

  • ध्यान रखें: किले तक जाने के लिए टैक्सी या ऑटो रिक्शा लेना पड़ता है। किला बहुत विशाल है, इसलिए घूमने के लिए पर्याप्त समय और आरामदायक जूते रखें।

निष्कर्ष:
चित्तौड़गढ़ सिर्फ एक ऐतिहासिक शहर नहीं, बल्कि एक पवित्र तीर्थस्थल भी है। यहाँ के मंदिर न सिर्फ आस्था के केंद्र हैं, बल्कि प्राचीन भारतीय कला, संस्कृति और इतिहास के जीवंत दस्तावेज भी हैं। यह स्थान वीरता और भक्ति का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है।

सावलिया मंदिर, चित्तौड़गढ़: एक संपूर्ण परिचय



सावलिया मंदिर चित्तौड़गढ़ जिले के सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर अपने अद्भुत शिल्प और भगवान कृष्ण के独特 रूप के लिए पूरे राजस्थान में जाना जाता है।


1. मंदिर का स्थान और नामकरण (Location & Naming)

  • स्थान: यह मंदिर चित्तौड़गढ़ शहर से लगभग 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और प्रतापगढ़ जिले की सीमा के निकट है। यह एक छोटे से गाँव, सावलिया (Sawaliya) में स्थित है, जिसके नाम पर इस मंदिर का नाम पड़ा।

  • नाम का अर्थ: "सावलिया" शब्द का स्थानीय भाषा में एक विशेष अर्थ है। भगवान कृष्ण का यहाँ का स्वरूप श्याम वर्ण (सांवला रंग) का है, इसीलिए इन्हें "श्री सावलिया जी" या "श्री सावलिया धाम" के नाम से पुकारा जाता है।


2. देवता और धार्मिक महत्व (Deity & Religious Significance)

  • मुख्य देवता: इस मंदिर के मुख्य देवता भगवान श्री कृष्ण हैं, जिनकी यहाँ बाल गोपाल के रूप में पूजा की जाती है। यहाँ स्थापित मूर्ति भगवान कृष्ण की एक अत्यंत सुंदर, काले पत्थर से निर्मित प्रतिमा है।

  • महत्व: इस मंदिर को "राजस्थान का द्वारका" भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं के दर्शन का पुण्य मिलता है।


3. मंदिर की वास्तुकला और संरचना (Architecture & Structure)

  • शैली: यह मंदिर प्राचीन हिंदू मंदिर वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसके निर्माण में नागर शैली की झलक साफ देखी जा सकती है।

  • मुख्य आकर्षण:

    • गर्भगृह (Sanctum Sanctorum): गर्भगृह में भगवान सावलिया जी (बाल कृष्ण) की सुंदर मूर्ति स्थापित है।

    • शिखर (Spire): मंदिर का मुख्य शिखर बहुत ऊँचा और भव्य है, जो दूर से ही दिखाई देता है। इस पर सुंदर नक्काशी की गई है।

    • सभा मंडप (Assembly Hall): गर्भगृह के सामने एक विशाल सभा मंडप है, जहाँ भक्त एक साथ बैठकर प्रार्थना कर सकते हैं।

    • स्तंभ (Pillars): मंडप के स्तंभों पर देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं और floral patterns related to intricate carvings are visible.


4. इतिहास और निर्माण (History & Construction)

माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 10वीं-11वीं शताब्दी के आस-पास हुआ था। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, मेवाड़ के एक राजा ने स्वप्न में भगवान कृष्ण का आदेश पाकर इस मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर का वर्तमान स्वरूप समय-समय पर हुए जीर्णोद्धार का परिणाम है।


5. दर्शन का समय और विशेष त्योहार (Visiting Hours & Festivals)

  • दर्शन का समय: मंदिर सुबह लगभग 5:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक और शाम को 4:00 बजे से 9:00 बजे तक खुला रहता है। (समय में मौसम के अनुसार बदलाव हो सकता है)

  • प्रमुख त्योहार:

    • जन्माष्टमी: यहाँ का सबसे बड़ा और धूम-धाम से मनाया जाने वाला त्योहार है। इस दिन हज़ारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

    • होली: भगवान कृष्ण का प्रिय त्योहार होली भी यहाँ बहुत उत्साह के साथ मनाई जाती है।


6. कैसे पहुँचें? (How to Reach?)

  • सड़क मार्ग: चित्तौड़गढ़ से सावलिया जाने के लिए बसें और निजी टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं। यह सफर लगभग 2-2.5 घंटे का है।

  • रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन चित्तौड़गढ़ ही है।

  • हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर में है।

निष्कर्ष:
श्री सावलिया जी मंदिर न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और वास्तुकला का एक जीवंत उदाहरण भी है। यह स्थान भक्ति और कला का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है और हर साल लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।

🛕 बीजामंडल (विजया मंदिर), मध्य प्रदेश

🛕 बीजामंडल (विजया मंदिर), मध्य प्रदेश — पूरा परिचय स्थान: खजुराहो के दक्षिणी मंदिर समूह के पास, जटकरी गाँव , ज़िला छतरपुर, मध्य प्रदेश। ...